Chooti Galiya - 1 in Hindi Fiction Stories by Kavita Verma books and stories PDF | छूटी गलियाँ - 1

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छूटी गलियाँ - 1

  • छूटी गलियाँ
  • कविता वर्मा
  • (1)
  • शाम होते ही मुझे घर में अकेलापन खाने को दौड़ता है इसलिए कॉलोनी के पार्क की ओर चल देता हूँ। आज भी शाम से ही पार्क में आ गया दो तीन चक्कर लगाये थक गया तो एक बेंच पर बैठ गया। काफी देर चहलकदमी करते युवा जोड़ों, महिलाओं और बुजुर्गों को देखता रहा। झूला झूलते और अपनी बारी आने का इंतज़ार करते बच्चों की उद्विग्नता और धैर्य को तौलता रहा। आसपास कुछ छोटे बच्चे फिसल पट्टी पर खेल रहे थे, उन की मम्मियाँ घास पर बैठी गपशप कर रही थीं और बीच बीच में अपने बच्चों को आवाज़ लगा कर आगाह भी करते जा रही थीं। चना जोर गरम, मूँगफली वालों के पास आकर रुकने पर बार बार मना करने से बचने के लिये उनसे आँख चुराता रहा लेकिन समय काटने के लिए इन्हीं हलचलों का सहारा था इसलिए काफी देर तक इन्हीं के बीच बैठा भी रहा। अब लेकिन सच उकताहट होने लगी थी। उठ कर जाने की सोच ही रहा था कि पास की बेंच पर दो महिलायें आ कर बैठ गईं।
  • "मैं क्या करूँ बहुत परेशान हो गयी हूँ?" नीली साड़ी वाली दुबली पतली सांवली सी महिला के शब्दों ने उठने से रोक दिया।

    पार्क में सन्नाटा भरता जा रहा था मैं अब अपनी समस्त शक्ति को श्रवणेन्द्रियों की ओर मोड़ कर उनकी बातचीत सुनने का प्रयत्न करने लगा। पार्क की लाइटें एक एक करके जलने लगी थीं। छोटे बच्चे धीरे धीरे जाने लगे पार्क में टहलने आने वाले बुजुर्ग भी अब बाहर की तरफ बढ़ने लगे कुछ युगल जोड़े अभी भी झाड़ियों के झुरमुट में थे लेकिन उनकी आवाज़ बमुश्किल एक दूसरे तक पहुँचती होगी इसलिए उनसे कोई शोर नहीं होता। चना जोर गरम वाला और मूंगफली गुब्बारे वाले भी अपने ग्राहकों के जाते ही दिन भर का हिसाब करने चल दिए थे। कुल मिला कर चारों ओर शांति ही शांति थी इसलिए थोड़ी कोशिश करके मैं उनकी बातें सुन सकता था।

    दूसरी लड़की या कहें महिला पीली शिफ़ोन की साड़ी पहनी थी और नीली साड़ी वाली का हाथ थामे पूछ रही थी "क्या बात है ठीक से बता तो।"

    मैं अपनी बेंच पर उनकी बेंच तरफ के किनारे तक खिसक आया। उन दो अनजान महिलाओं की बातें सुनने की स्वयं की उत्सुकता से मैं स्वयं ही चकित था। मुझे दूसरों की बातों में कभी भी ऐसा रस तो नहीं आता था। अब यह अकेलेपन की ऊब थी या उन दोनों या उनमे से किसी एक का आकर्षण जिसकी वजह से मैं जानना चाहता था कि वे क्या बातें कर रही हैं।

    "तुझे तो मालूम है विजय पिछले दस सालों से दुबई में है। शादी के तीन सालों बाद ही वो वहाँ चले गए थे तब राहुल दो साल का था। शुरू शुरू में तो डेढ़ दो साल में एक बार इंडिया आते थे। तब मम्मी पापा दोनों ही थे। उनका आग्रह टाल नहीं पाते थे। उसी समय उन्होंने मकान भी दो हिस्सों में बनवाया, जब मैंने पूछा तो कहने लगे "जब वापस आऊँगा तब दूसरे हिस्से में डिस्पेंसरी खोल लूँगा तब तक इसे किराये पर उठा देना मकान का लोन चुक जायेगा। तब मुझे और मम्मी पापाजी को भी यह बात समझदारी की ही लगी थी।"

    पाँच साल पहले पापाजी गुजर गये और तीन साल पहले मम्मी के गुज़र जाने के बाद से वह नहीं आये। पहले हफ्ते में, फिर महीने में, फिर मम्मी पापा के जन्मदिन पर फोन करते थे राहुल भी छोटा था तो यह कहने पर कि पापा को बहुत काम होता है या फोन करने में बहुत पैसे लगते हैं वह समझ जाता था लेकिन कब तक। अब वह बड़ा हो रहा है बच्चे आपस में बातचीत करते हुए बहुत सारी जानकारी पाते रहते हैं। उसके एक क्लास मेट के पापा भी अबुधाबी में हैं रोज़ उसे फोन करते हैं गिफ्ट्स भेजते हैं और वह शान से सबको बताता भी है। तब बच्चे राहुल से भी पूछते है, 'तेरे पापा भी तो दुबई में हैं तेरे लिए क्या भेजते हैं? तुझे फोन नहीं करते?' वह यही प्रश्न मुझसे करता है और जब उसे इनका जवाब नहीं मिलता तो गुस्से में कभी कॉपी किताब पटकता है तो कभी खाना खाए बिना सो जाता है। अभी अगले महीने उसका जन्मदिन आने वाला है, वह तो अभी से जन्मदिन के प्लान बनाने लगा है उम्मीद कर रहा है उसके पापा इस खास दिन तो उसे फोन करेंगे उसके लिये गिफ्ट्स भेजेंगे। मुझे मालूम है विजय का फोन नहीं आएगा तब उसे कितना बुरा लगेगा, और पता नहीं गुस्से में क्या क्या करेगा, मैं तो सोच सोच कर ही परेशान हूँ।"

    "लेकिन ऐसा क्यों? तूने कभी उनसे पूछा नहीं वो फोन क्यों नहीं करते?माता पिता नहीं रहे पर उनके बीवी बच्चे तो है यहाँ, उनके लिए तो उन्हें यहाँ आना चाहिए और बेटा तो उनका अपना है उसके जन्मदिन पर भी फोन नहीं करना, आखिर क्यों नेहा?"

    ओह तो नीली साड़ी वाली का नाम नेहा है। मैंने उसे ध्यान से देखा रंग सांवला पर नाक नक्श सुन्दर है, चेहरे पर गहरी उदासी, नज़रें झुकी हुई और होंठ कांपते हुए। उम्र होगी यही कोई तैतीस चौतीस साल लैंप पोस्ट की रोशनी में उसके गालों पर आँसू की लकीरें चमकती दिखी मुझे, वह रो रही थी।

    उसकी सहेली ने झकझोरा उसे, "नेहा नेहा बोल न क्या बात है रो क्यों रही है? उसने अपने पल्लू से नेहा के आँसू पोंछे पर्स से पानी की बोतल निकाल कर उसे पानी पिलाया और उसकी पीठ सहलाने लगी।"

    पानी पी कर नेहा ने पलकें उठायीं और अपनी सहेली को देखा फिर बोली "अब वो कभी नहीं आयेंगे, उन्होंने वहाँ दूसरी शादी कर ली।"

    "क्या?" उसकी सहेली चौंक पड़ी, चौंक तो मैं भी पड़ा। ओह अब समझा उन नज़रों की उदासी इतनी गहरी क्यों है? अपनों से बिछुड़ने का दर्द रोजमर्रा की जिंदगी में चाहे नज़र ना आये पर आँखों में स्थाई तौर पर बस जाता है। जिसे हर कोई नहीं देख पढ़ पाता पर जिसमे यह दर्द बसा हो वह भला इसे समझने में चूक कैसे कर सकता है।

    "लेकिन कब किससे तूने कुछ कहा नहीं, तेरे भैया भाभी रिश्तेदार उन्हें पता है?"

    "नहीं किसी को नहीं बस मुझे और अब तुझे। मेरी सांवली रंगत उन्हें सदा से पसंद नहीं थी फिर भी शादी के बाद साल दो साल खुद की इच्छाओं पर वश न हो पाया, इसलिए राहुल इस दुनिया में आया। तब मम्मी पापा भी थे उनके सामने वे भले बेटे, पति और पिता बने रहे। दुबई जाने के दो साल बाद ही उन्होंने अपनी सहपाठी से शादी कर ली और वहीं बस गए। मकान इसीलिए दो हिस्सों में बनवाया ताकि किराये से मेरा खर्च चलता रहे और उन पर कोई आर्थिक भार भी न पड़े। जब मम्मी की मृत्यु के बाद आये थे तेरहवीं हो जाने के बाद भैया ने उनसे कहा भी था 'अब आप वापस आ जाइये या इन दोनों को भी अपने साथ ले जाइये।'

    तब सबके सामने बोले थे "हाँ मैं भी सभी व्यवस्थाएँ जमाने में लगा हूँ, जल्दी ही कोई फैसला लूँगा।" उस रात सबके जाने और राहुल के सो जाने के बाद मुझसे बोले "नेहा मैं कल जा रहा हूँ और अब कभी वापस नहीं आऊँगा, मैंने वहाँ दूसरी शादी कर ली है और हमारे दो बच्चे हैं एक बेटा सात साल का और बेटी पाँच साल की। पापा का सारा पैसा करीब सत्रह लाख रुपये तुम्हारे नाम से फिक्स डिपोजिट करवा दिए हैं। यह मकान भी तुम्हारे नाम से है, एक हिस्से का किराया मिलता रहेगा तुम्हे और राहुल को कभी कोई दिक्कत नहीं होगी। अगर तुम चाहो तो सब रिश्तेदारों को बता कर समाज में मेरी और खुद की खिल्ली उड़वा सकती हो, मुझ पर केस करके चाहो तो और रूपया हासिल कर सकती हो पर फिर भी मैं तुम्हारे पास वापस नहीं लौटूँगा।" फिर समझाने के से स्वर में कहने लगे 'देखो मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है तुमने मम्मी पापा की इतनी सेवा की है कि शायद मैं भी न कर पाता। अब अगर तुम चाहो तो मैं कुछ और लाख रुपये तुम्हारे नाम कर दूँगा पर वहाँ अपनी जमी हुई प्रेक्टिस, प्रतिष्ठा और अपना परिवार छोड़ कर वापस नहीं आ सकता।'

    "सच बताऊँ अंजलि यह बहुत अपमानजनक था ऐसा लगा मानों अपने मम्मी पापा की सेवा का मोल देकर मुझसे पीछा छुड़ा रहे हैं या मेरे साथ अंतरंग होने के गिल्ट की भरपाई कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। उस अपमान ने मुझे सुन्न कर दिया था मुझे घृणा हुई थी विजय से अपने आप से। मन तो हुआ था चीख चीख कर उस व्यक्ति की खुदगर्जी सबके सामने रखूँ पर वहाँ था ही कौन जिसे यह सब बताती। मायके में माँ बाप रहे नहीं भाई भाभी के सहारे सब कुछ छोड़ कर चली जाती पर कितने दिन कितने महीने ? वहाँ रोज़ रोज़ अनाथ असहाय महसूस करने से बेहतर था अपने बेटे के बारे में सोचती उसके भविष्य के लिए जो सुरक्षा निधि मिल रही थी उसे लेकर चुप रह जाना ही मुझे ठीक लगा। अब तू ही बता इसके बाद तमाशा करके क्या होता? बात खुलने के बाद परित्यक्ता कहलाने से अच्छा था आज लोग डॉक्टर साहब की पत्नी कह कर सम्मान तो देते हैं। तभी मैंने नौकरी कर ली ताकि खुद की एक पहचान बना सकूँ और खुद को व्यस्त रख सकूँ। लेकिन अब राहुल को समझा पाना मुश्किल होता जा रहा है क्या करूँ?"

    पीली साड़ी वाली नेहा की सहेली भी सोच में पड़ गयी। कुछ देर सोचने के बाद बोली "देख राहुल के जन्मदिन पर कुछ बहुत हंगामेदार करते हैं। शानदार पार्टी केक पेस्ट्री कोल्ड्रिंक डीजे खूबसूरत डेकोरेशन उसके पसंद का खाना। हो सके तो किसी होटल का छोटा सा हॉल बुक कर लें और उसमे पार्टी करें। किसी इवेंट कंपनी को भी सारा अरेंजमेंट दे सकते हैं। वह कुछ ऐसा करे कि वह इतना व्यस्त रहे कि पापा का फोन ना आने का उसे ध्यान ही ना आये।"

    नेहा सोच में डूब गई मैं धीरे से मुस्कुरा दिया क्या इससे काम चलेगा क्या पापा की जगह पार्टी डीजे केक पेस्ट्री ले सकते हैं? कितना आसान मानते हैं ना रिश्तों का प्रतिस्थापन?

    ***